तुम कहते हो
तुम्हे भूल जाऊं
ये क्यूँ नहीं कहते, दुनिया छोड़ जाऊं
छीन कर मुझसे,
मेरी खुशियाँ
ज़माना कहता है, ' मै मुस्कुराऊँ '
ज़ालिम
अदाओं के
तीर चलाता है
फिर ये कहता है
'मै अपने ज़ख्म न गिनवाऊँ '
ऐ ख़ुदा ! अब तू ही बता
तेरी ये दुनिया छोड़
मै कहाँ जाऊँ ??
मुकेश इलाहाबादी -------------------
तुम्हे भूल जाऊं
ये क्यूँ नहीं कहते, दुनिया छोड़ जाऊं
छीन कर मुझसे,
मेरी खुशियाँ
ज़माना कहता है, ' मै मुस्कुराऊँ '
ज़ालिम
अदाओं के
तीर चलाता है
फिर ये कहता है
'मै अपने ज़ख्म न गिनवाऊँ '
ऐ ख़ुदा ! अब तू ही बता
तेरी ये दुनिया छोड़
मै कहाँ जाऊँ ??
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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