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Wednesday, 9 December 2015

ज़ख्म गहरा हो गया

ज़ख्म गहरा हो गया
जिस्म दोहरा हो गया
और कितना चीखूँ मै
शहर  बहरा  हो  गया
नागों के संग  रह  मै
ज़हर मोहरा हो गया
तेरे गालों  पे  ये तिल
हुश्न पे पहरा हो गया
मुकेश  तेरे  जाते  ही
जीवन सहरा हो गया
मुकेश इलाहाबादी --

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