ज़ख्म गहरा हो गया
जिस्म दोहरा हो गया
और कितना चीखूँ मै
शहर बहरा हो गया
नागों के संग रह मै
ज़हर मोहरा हो गया
तेरे गालों पे ये तिल
हुश्न पे पहरा हो गया
मुकेश तेरे जाते ही
जीवन सहरा हो गया
मुकेश इलाहाबादी --
जिस्म दोहरा हो गया
और कितना चीखूँ मै
शहर बहरा हो गया
नागों के संग रह मै
ज़हर मोहरा हो गया
तेरे गालों पे ये तिल
हुश्न पे पहरा हो गया
मुकेश तेरे जाते ही
जीवन सहरा हो गया
मुकेश इलाहाबादी --
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