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Tuesday, 8 December 2015

तुम्हारी निर्मल हँसी


जी तो चाहता है
तुम्हारी निर्मल हँसी
की दूधिया धार को
अंजुरी में समेट
आचमन कर
मै भी हूँ जाऊँ
पावन
पवित्रतम
तुम्हारे
निश्छल प्रेम सा 
और महमहाऊं
तुम्हारे आस पास 
पूजा की
धूप सा

मुकेश इलाहाबादी -------

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