सुबह हुई तुम्हारे शहर में, शाम हुई
ज़िंदगी तुम्हारे शहर में तमाम हुई
इक परदे ने बचा रखी थी इज़्ज़त
ज़रा हवा चली, इज़्ज़त तमाम हुई
इतने कारखाने, इमारते बन गयी हैं
शहर में अब ताज़ी हवा हराम हुई
फुर्सत व तसल्ली से तुमसे मिला हूँ
बाकी सभी से सिर्फ दुआ सलाम हुई
ज़िंदगी सिर्फ भाग - दौड़ ही गयी है
मुकेश रातों की नींद भी हराम हुई
मुकेश इलाहाबादी --------------------
ज़िंदगी तुम्हारे शहर में तमाम हुई
इक परदे ने बचा रखी थी इज़्ज़त
ज़रा हवा चली, इज़्ज़त तमाम हुई
इतने कारखाने, इमारते बन गयी हैं
शहर में अब ताज़ी हवा हराम हुई
फुर्सत व तसल्ली से तुमसे मिला हूँ
बाकी सभी से सिर्फ दुआ सलाम हुई
ज़िंदगी सिर्फ भाग - दौड़ ही गयी है
मुकेश रातों की नींद भी हराम हुई
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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