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Monday, 4 January 2016

इन दिनो

इन दिनो
कुछ भी
हो सकता है ?
धरती हिल सकती है
आसमान फट सकता है
पहाड गिर सकता है
यहां तक कि
सूरज के घर
अंधेरा भी हो सकता है।

इन दिनो
दाल सब्जी
और घास फूस के दाम
आसमान छू सकते हैं
और जनता को इसे
आर्थिक विकास का
सामान्य नियम
या अंर्तराष्ट्रीय समस्या
कह के समझाया जा सकता है

इन दिनो
कहीं भी कभी भी
दंगा हो सकता है
या फिर इन दिनो 
कोई भी फसादी अबदादी
मजहब के नाम मे
दुनिया हिला सकता है

इन दिनो
कोई भी साधू महात्मा
या प्रवचन देने वाला पाखंडी
हो सकता है
कोई भी नेता, अफसर और व्यापारी
भ्रष्टाचार मे लिप्त पाया जा सकता है
इन दिनो

इन दिनो
होने को कुछ भी
हो सकता है
इन दिनो ये भी
हो सकता है
आप घर से निकलें
और बम फट जाये और
फिर आप वापस घर न जा पायें
बेटी घर से निकले
और बलात्कार का शिकार हो जाये

इस लिये बेहतर यही है
इन दिनो
घर पे बैठा जाये
चाय की चुस्कियों के साथ
चैनल बदल बदल के न्यूज देखा जाये
और आज के हालात पे चर्चा किया जाये

क्योंकी इन दिनो कहीं भी कुछ भी हो सकता है


इन दिनो
आदमी चॉद पे जा रहा है
कल मंगल पे जा रहा  है
ब्रम्हाण्ड का का सिर
फोडने के तैयारी कर रहा है
इन दिनो आदमी
विकास कर रहा है
इन दिनो
आदमी आदमी को खा रहा है
इन दिनो

इन दिनो
वक्त कर रहा है वार
चाबुक से पीठ पे
और मै सह रहा हूं चुपचाप
इन दिनो

इन दिनो
हर कोई चिल्ला रहा है
भाग रहा है
दौड रहा है
बेतहासा इन दिनो

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