सुमी,
ये तो सच है
जब तक मै रहूंगा ‘आदम’
और तुम ‘ईव’
तब तक हम खाते रहेंगे ‘सेब’
भोगते रहेंगे नर्क
इससे तो बेहतर है
मै बन जाउं जंगल
घना ओर बियाबान
तुम बहो उसमे
नदी सा हौले - हौले
या फिर मै
टंग जाउं आसमान मे
चॉद सा
और तुम बनो
मीठे पानी की झील
सांझ होते ही मै
उतर आउं जिसमे
चुपके से,
सुबह होते ही फिर
टंग जाउूं आसमान मे
या तो,
ऐसा करते हैं
मै बन जाता हूं आंगन
जिसमे तुम उग आओ
तुलसी बन के
या फिर तुम
बन जाओ
धरती और मै
बन जाउं बादल
और तुझसे मिलने आउं
सावन भादों मे
झम झमा झम झम
मुकेश इलाहाबादी ...
ये तो सच है
जब तक मै रहूंगा ‘आदम’
और तुम ‘ईव’
तब तक हम खाते रहेंगे ‘सेब’
भोगते रहेंगे नर्क
इससे तो बेहतर है
मै बन जाउं जंगल
घना ओर बियाबान
तुम बहो उसमे
नदी सा हौले - हौले
या फिर मै
टंग जाउं आसमान मे
चॉद सा
और तुम बनो
मीठे पानी की झील
सांझ होते ही मै
उतर आउं जिसमे
चुपके से,
सुबह होते ही फिर
टंग जाउूं आसमान मे
या तो,
ऐसा करते हैं
मै बन जाता हूं आंगन
जिसमे तुम उग आओ
तुलसी बन के
या फिर तुम
बन जाओ
धरती और मै
बन जाउं बादल
और तुझसे मिलने आउं
सावन भादों मे
झम झमा झम झम
मुकेश इलाहाबादी ...
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