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Thursday, 7 January 2016

दूर बहुत दूर तक देखती हुई आँखें

दूर बहुत दूर  तक देखती हुई आँखें
हर वक़्त तुमको खोजती हुई आँखें

सारा ज़माना कहता है,मै नशे में हूँ
उन्हें क्या पता दर्द में डूबी हुई आँखें

दरिया ऐ ईश्क बहा करता था जहाँ
फक़त रेत् ही रेत् की नदी हुई आँखें

जिस्म बुत में तब्दील हो गया,और
ज़माना देख कैसे पथरीली हुई आँखें

जाओ, सब को बता दो दुनिया वालों
ये हैं सिर्फ तुमको सोचती हुई आँखें

जहां कहीं भी हो वहीें से देख मुकेश
यारके इंतज़ार में लरज़ती हुई आँखें

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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