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Thursday, 7 January 2016

दरअसल जब औरत


एक
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दरअसल
जब
औरत
घिस घिस कर
चमका रही होती है
बर्तन
तब
दरअसल
वह खुद को घिसकर
चमका रही होती है
बर्तन को

दो
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दरअसल
जब
औरत
झाड़ू से
बुहारती रही होती है 
घर के सारे
कमरे, बरामदे
छत, और दीवारें
और झाड़न ले कर
निकलती है
कोने अतरे के जालों को
तब वह सिर्फ
घर के जाले और
कूड़े नहीं बुहार रही होती है
वह इनके साथ
घर के दुःख दलिद्दर
को भी बुहार रही होती है

मुकेश इलाहबदी ---------

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