आओ
कुछ देर
चुप रहें
और सुने
उन शब्दों को
जिसे कहा है
तुम्हारी खामोशी ने
मेरे मौन से
महसूसें
उस
सात्विक स्पर्श को
जो परे है
वासना से
स्त्री - पुरुष के भेद से
पाप -पुण्य से
घृणा और द्वेष से
और कुछ देर
हो जाएं 'हम'
मैं और तुम से
परे हो के
आओ कुछ देर .....
मुकेश इलाहाबादी -----
कुछ देर
चुप रहें
और सुने
उन शब्दों को
जिसे कहा है
तुम्हारी खामोशी ने
मेरे मौन से
महसूसें
उस
सात्विक स्पर्श को
जो परे है
वासना से
स्त्री - पुरुष के भेद से
पाप -पुण्य से
घृणा और द्वेष से
और कुछ देर
हो जाएं 'हम'
मैं और तुम से
परे हो के
आओ कुछ देर .....
मुकेश इलाहाबादी -----
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