काश कोई सन्नाटा बाँट लेता
मेरा दर्द मेरा दुखड़ा बाँट लेता
कुछ देर को हंस लेता मै भी
एक आध लतीफा बाँट लेता
कब से अँधेरे मे बैठा हूँ, काश
कोई,ये घना अँधेरा बाँट लेता
इंसां के बस में नहीं था वरना
चाँद - तारे आसमा बाँट लेता
ज़माने में कोई भूखा न रहता
गर इंसान निवाला बाँट लेता
सिर्फ इक मसीहा था, मुकेश
वो अकेला क्या -२ बाँट लेता
मुकेश इलाहाबादी -------------
मेरा दर्द मेरा दुखड़ा बाँट लेता
कुछ देर को हंस लेता मै भी
एक आध लतीफा बाँट लेता
कब से अँधेरे मे बैठा हूँ, काश
कोई,ये घना अँधेरा बाँट लेता
इंसां के बस में नहीं था वरना
चाँद - तारे आसमा बाँट लेता
ज़माने में कोई भूखा न रहता
गर इंसान निवाला बाँट लेता
सिर्फ इक मसीहा था, मुकेश
वो अकेला क्या -२ बाँट लेता
मुकेश इलाहाबादी -------------
No comments:
Post a Comment