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Thursday, 28 January 2016

काश कोई सन्नाटा बाँट लेता

काश कोई सन्नाटा बाँट लेता
मेरा दर्द मेरा दुखड़ा बाँट लेता

कुछ देर को  हंस लेता मै  भी
एक  आध लतीफा  बाँट लेता

कब से अँधेरे मे बैठा हूँ, काश
कोई,ये घना अँधेरा बाँट लेता

इंसां के बस में नहीं था वरना
चाँद - तारे आसमा बाँट लेता

ज़माने में कोई भूखा न रहता
गर इंसान निवाला बाँट लेता

सिर्फ इक मसीहा था, मुकेश
वो अकेला क्या -२ बाँट लेता

मुकेश इलाहाबादी -------------

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