पत्थरों को काट कर निकला हूँ मै
तिश्ना लबों के लिए दरिया हूँ मै
मेरा सीना पुल है गुज़र जाओ तुम
नदी के पार जाने का जरिया हूँ मै
कोई मुसाफिर भटकने न पायेगा
राहमें मील के पत्थर सा गड़ा हूँ मै
मुकेश इलाहाबादी ------------------
(तिश्ना लब - प्यासे होठ )
तिश्ना लबों के लिए दरिया हूँ मै
मेरा सीना पुल है गुज़र जाओ तुम
नदी के पार जाने का जरिया हूँ मै
कोई मुसाफिर भटकने न पायेगा
राहमें मील के पत्थर सा गड़ा हूँ मै
मुकेश इलाहाबादी ------------------
(तिश्ना लब - प्यासे होठ )
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