जमे हुए ज़ख्म पिघले होंगे
आँख से आँसू तब बहे होंगे
किसी ने तो दुलराया होगा
दर्द के किस्से तब कहे होंगे
कुछ तो हमदर्दी रही होगी
तभी तेरे किस्से सुने होंगे
तमाम सर्द रातें काटी होंगी
तभी तो ये ज़ख्म जमे होंगे
तमाम रात बातें की उनने
वे, मुद्द्तों बाद मिले होंगे
मुकेश इलाहाबादी ---------
आँख से आँसू तब बहे होंगे
किसी ने तो दुलराया होगा
दर्द के किस्से तब कहे होंगे
कुछ तो हमदर्दी रही होगी
तभी तेरे किस्से सुने होंगे
तमाम सर्द रातें काटी होंगी
तभी तो ये ज़ख्म जमे होंगे
तमाम रात बातें की उनने
वे, मुद्द्तों बाद मिले होंगे
मुकेश इलाहाबादी ---------
No comments:
Post a Comment