कोई मसले और फूल सा बिखर जाऊँ
मै लोहा भी नही,कि साँचे में ढल जाऊँ
ये और बात गुलशन की शिफत अपनी
प्यार मिलते ही मै ,फूल सा खिल जाऊँ
मै सूरज हूँ धूप सा बिखरा हूँ हर सिम्त
ज़रा खिड़खी तो खोल,तो मै नज़र आऊँ
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
मै लोहा भी नही,कि साँचे में ढल जाऊँ
ये और बात गुलशन की शिफत अपनी
प्यार मिलते ही मै ,फूल सा खिल जाऊँ
मै सूरज हूँ धूप सा बिखरा हूँ हर सिम्त
ज़रा खिड़खी तो खोल,तो मै नज़र आऊँ
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
No comments:
Post a Comment