एक मत्ला दो शे'र
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रात जब हम सोते हैं
तेरे ही ख्वाब होते हैं
महफ़िल में मुस्काते
औ तन्हाई में रोते हैं
बिछड़ के तुझसे हम
कितना कुछ खोते हैं
मुकेश इलाहाबादी --
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रात जब हम सोते हैं
तेरे ही ख्वाब होते हैं
महफ़िल में मुस्काते
औ तन्हाई में रोते हैं
बिछड़ के तुझसे हम
कितना कुछ खोते हैं
मुकेश इलाहाबादी --
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