Pages

Tuesday, 15 March 2016

एक नदी बहा ऊंगा इत्र की

एक नदी
बहा ऊंगा
इत्र की

उतारूंगा 
उसमे फूलों
की नाव

जिसपे बैठ के
चलेंगे
हम दोनों
पार
उस पार
जहाँ
बरसती होगी
चांदनी
खिलते होंगे
ईश्क के गुलाब
और
अहर्निश बजती होगी
सरगम
तुम्हारी पायल के
साथ करती रहेगी
संगत
और मै
देखूँगा
एक मीठी मुस्कान
तुम्हारे चेहरे पे

मुकेश इलाहाबादी --

No comments:

Post a Comment