तुम्हारे,
होठों की
खामोशी
जिसमे छिपे हैं
मेरे तमाम
सवालों के जवाब
या एक टीस ,जिसे
चुरा कर
लगा देना
चाहता हूँ
एक बित्ता मुस्कान
और देखूँ इसे
खिलते हुए टेसू सा
इस फागुन में
मुकेश इलाहाबादी --------
होठों की
खामोशी
जिसमे छिपे हैं
मेरे तमाम
सवालों के जवाब
या एक टीस ,जिसे
चुरा कर
लगा देना
चाहता हूँ
एक बित्ता मुस्कान
और देखूँ इसे
खिलते हुए टेसू सा
इस फागुन में
मुकेश इलाहाबादी --------
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