जिंदगी अपनी मुस्कुराने लगी है तब से
नज़दीक मेरे आप आने लगे हैं, जब से
इक बार आप आ कर देखें ज़रा छत से
खड़े हैं आपके दर पे हम न जाने कब से
दे दें गर इज़ाज़त बटोर लूँ दौलत को,जो
हंसी के हीरे मोती झरते हैं आपके लब से
फक्त आप की झलक पाने के बाद से ही
इबादत में आप को ही मांगते हैं रब से
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
नज़दीक मेरे आप आने लगे हैं, जब से
इक बार आप आ कर देखें ज़रा छत से
खड़े हैं आपके दर पे हम न जाने कब से
दे दें गर इज़ाज़त बटोर लूँ दौलत को,जो
हंसी के हीरे मोती झरते हैं आपके लब से
फक्त आप की झलक पाने के बाद से ही
इबादत में आप को ही मांगते हैं रब से
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
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