तू फूल की मानिंद खिल और खुशबू सा महक
या परिंदा बन कर , मुंडेर पे बुलबुल सा चहक
वज़ूद में अपने यूँ बर्फ सा ठंडापन मत रख तू
पहले शोला बन फिर अंगारा सा देर तक दहक
मेरी चाहत है तू इक दिन तू महताब बन जाये
चाँद बन कर मेरी अंधेरी स्याह रातों में चमक
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------
या परिंदा बन कर , मुंडेर पे बुलबुल सा चहक
वज़ूद में अपने यूँ बर्फ सा ठंडापन मत रख तू
पहले शोला बन फिर अंगारा सा देर तक दहक
मेरी चाहत है तू इक दिन तू महताब बन जाये
चाँद बन कर मेरी अंधेरी स्याह रातों में चमक
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------
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