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Thursday, 18 August 2016

रात ऑगन में चॉदनी नही आती

रात ऑगन में चॉदनी नही आती
मेरे चेहरे पे अब हंसी नही आती
मीलों फैला रेगिस्तान हो गया हूं
मेरे घर तक कोई नदी नही आती
मुकंश तू भी मुझको भूल गया है ?
अर्सा हुआ तेरी चिठठी नही आती
मुकेश इलाहाबादी .................

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