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Thursday, 22 September 2016

मुझसे इस क़दर ख़फ़ा न हो

मुझसे इस क़दर ख़फ़ा न हो
फिर मिलें तो, शर्मिंदा न हों 

आना है तो, जल्दी लौट आ
ऐसा न हो, हम ज़िंदा न  हों

मेरी आदतें न बिगाड़ तू, कि  
बिन तेरे मेरा गुज़ारा न  हो

काँच सा दिल है टूट न जाए  
फिर देखने को आईना  न हो

महताब ख़फ़ा, सूरज ख़फ़ा
ऐसा तो नही, उजाला न हो 

मुकेश एहतियात  से रह तू
कहीं वही गल्ती दुबारा न हो

मुकेश इलाहाबादी ----------

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