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Monday, 26 September 2016

रात के आँचल में मुँह छुपा के रोई

रात के आँचल में मुँह छुपा के रोई
ज़िन्दगी हादसों से घबरा  के रोई

फूल सा खिला करती थी सच्चाई
झूठ के हाथों आबरू लुटा के रोई

पहले ईश्क़ का नाम लिखा उसने
फिर नाम आँसुओं से मिटा के रोई

ज़ीस्त पहले तमाम दर्द सहती रही
फिर सारे ज़ख्म दिखा दिखा के रोई

मुकेश की ग़ज़लों में बहुत दर्द है ,,
ईश्क़ अपना दर्द सुना सुना के रोई

मुकेश इलाहाबादी ----------------

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