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Monday, 5 September 2016

किसी दोराहे या चौराहे पे


कभी तो,
किसी दोराहे
या चौराहे पे मुलाकात होगी
भले ही
तुम्हारे और मेरे रास्ते
कितना ही अलग - अलग हों

तब तुम मुझसे
कतरा के निकल जाना चाहोगे
और मैं तुम्हे
ठिठक कर देखता रहूँगा
देर तक -
दूर तक
जब तक की तुम मेरी नज़रों से
ओझल नहीं हो जाओगे

मुकेश इलाहाबादी ---------

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