तुम,
कलकल करती
नदी हो
जिसके साथ- साथ मैं भी
बह जाना चाहता हूँ
हिमालय से ले के
गंगा सागर तक
और समां जाना चाहता हूँ
हरहरा कर
समंदर की अथाह जल राशि में
तुम्हारी लहरों के साथ
मुकेश इलाहाबादी ----------
कलकल करती
नदी हो
जिसके साथ- साथ मैं भी
बह जाना चाहता हूँ
हिमालय से ले के
गंगा सागर तक
और समां जाना चाहता हूँ
हरहरा कर
समंदर की अथाह जल राशि में
तुम्हारी लहरों के साथ
मुकेश इलाहाबादी ----------
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