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Friday, 7 October 2016

तू ग़ज़ल मेरी गुनगुनाऊँ तुझको

तू ग़ज़ल मेरी गुनगुनाऊँ तुझको
आ इक बार गले लगाऊँ, तुझको
ले आया हूँ, चाँद -सितारे तोड़ के
आ अपने हाथों से सजाऊँ तुझको
मुकेश, अपना ग़म, अपनी खुशी
ग़र इज़ाज़त दे तो सुनाऊँ तुझको

मुकेश इलाहाबादी ---------------

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