पलकों के नीचे झाँइयाँ हैं
उदासी की परछाँइयाँ हैं
देख बुलन्दी के इर्द - गिर्द
पतन की गहरी खाइयाँ है
दोस्त राह -ऐ- मुहब्बत में
हर कदम पे रुसवाइयाँ हैं
मेरे हर ज़ख्म को देख तू ,
सिर्फ तेरी ही निशानियाँ हैं
तू सब को अपना समझे है
तेरी यही तो नादानियाँ है
मुकेश इलाहाबादी -------
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