परिंदो का भी ठिकाना है
बूढा बरगद आशियाना है
मुसाफिर मैं उम्र भर का
फ़क़त चलते ही जाना है
तेरी खामोश निगाहों से,
किया वादा भी निभाना है
तुमको मुहब्बत ही न थी
रुसवाई फ़क़त बहाना था
इक दिन तुम भी मानोगे
मुकेश अजब दीवाना था
मुकेश इलाहाबादी ----------
बूढा बरगद आशियाना है
मुसाफिर मैं उम्र भर का
फ़क़त चलते ही जाना है
तेरी खामोश निगाहों से,
किया वादा भी निभाना है
तुमको मुहब्बत ही न थी
रुसवाई फ़क़त बहाना था
इक दिन तुम भी मानोगे
मुकेश अजब दीवाना था
मुकेश इलाहाबादी ----------
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