मेरी तरह किसी के हिज़्र में होगा आफ़ताब
वरना इस कदर न जल रहा होता आफ़ताब
सुना है, सदियों से किसी की ज़ुस्तज़ू में है,
मुकेश बिन रुके तभी तो चल रहा आफ़ताब
वरना इस कदर न जल रहा होता आफ़ताब
सुना है, सदियों से किसी की ज़ुस्तज़ू में है,
मुकेश बिन रुके तभी तो चल रहा आफ़ताब
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------
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