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Wednesday, 22 March 2017

धूप ! आज भी हुलस, कर आती तो है

धूप !
आज भी
हुलस, कर
आती तो है
सुबह, छत पर 
मगर
साँझ होते - होते
लौट जाती है मायूस,
दबे पाँव 
तुम्हे न पा कर, छत पर 

ख्वाब !
आज भी आते तो हैं
मगर
तुम्हे न पा कर खो जाते हैं
न जाने किस अँधेरे बियाबान में

मुकेश इलाहाबादी ------

मुकेश इलाहाबादी ------

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