धूप !
आज भी
हुलस, कर
आती तो है
सुबह, छत पर
मगर
साँझ होते - होते
लौट जाती है मायूस,
दबे पाँव
तुम्हे न पा कर, छत पर
ख्वाब !
आज भी आते तो हैं
मगर
तुम्हे न पा कर खो जाते हैं
न जाने किस अँधेरे बियाबान में
मुकेश इलाहाबादी ------
मुकेश इलाहाबादी ------
आज भी
हुलस, कर
आती तो है
सुबह, छत पर
मगर
साँझ होते - होते
लौट जाती है मायूस,
दबे पाँव
तुम्हे न पा कर, छत पर
ख्वाब !
आज भी आते तो हैं
मगर
तुम्हे न पा कर खो जाते हैं
न जाने किस अँधेरे बियाबान में
मुकेश इलाहाबादी ------
मुकेश इलाहाबादी ------
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