यादें ,
किसी पंछी सा
अनंत आकाश में
उड़ती हैं,
दूर तलक
नज़रों से ओझल हो जाने की
हद तक, फिर सांझ
थक कर लौट आती हैं अपने ठिये पे
और चहचहाती हैं देर तक
मुकेश इलाहाबादी ---------
किसी पंछी सा
अनंत आकाश में
उड़ती हैं,
दूर तलक
नज़रों से ओझल हो जाने की
हद तक, फिर सांझ
थक कर लौट आती हैं अपने ठिये पे
और चहचहाती हैं देर तक
मुकेश इलाहाबादी ---------
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