प्यास से,
मुँह ही नहीं
हलक़ तक सूख चूका हो
रोयाँ - रोयाँ चीख़ रहा हो
इक इक बूँद जल के लिए
ऐसे में तुम मिली
शीतल, मीठे सरोवर की तरह
कंही कोइ रास्ता न हो
कहीं कोइ रोशनी न हो
कहीं कोइ उम्मीद न हो
ऐसे में तुम मिली
अंधेरी रात में चांदनी की तरह
सुमी,! तुम मुझे मिली थी कुछ इसी तरह
मुकेश इलाहाबादी -------------------
मुँह ही नहीं
हलक़ तक सूख चूका हो
रोयाँ - रोयाँ चीख़ रहा हो
इक इक बूँद जल के लिए
ऐसे में तुम मिली
शीतल, मीठे सरोवर की तरह
कंही कोइ रास्ता न हो
कहीं कोइ रोशनी न हो
कहीं कोइ उम्मीद न हो
ऐसे में तुम मिली
अंधेरी रात में चांदनी की तरह
सुमी,! तुम मुझे मिली थी कुछ इसी तरह
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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