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Thursday, 20 April 2017

तुम मुझे मिली थी कुछ इसी तरह

प्यास से,
मुँह ही नहीं
हलक़ तक सूख चूका हो 
रोयाँ - रोयाँ चीख़ रहा हो 
इक  इक बूँद जल के लिए 
ऐसे में तुम मिली
शीतल, मीठे सरोवर की तरह

कंही कोइ रास्ता न हो
कहीं कोइ रोशनी न हो
कहीं कोइ उम्मीद न हो
ऐसे में तुम मिली

अंधेरी रात में चांदनी की तरह

सुमी,! तुम मुझे मिली थी कुछ इसी तरह

मुकेश इलाहाबादी -------------------

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