तुम्हारी ,
खुशबू से तर यादों की रुमाल
को, मोड़ के रख लेता हूँ जेब में
एहतियात से
ज़रूरत पड़ने पे
पोंछ लेता हूँ
ज़माने के ग़मो से
नम हो आयी अपनी आँखों को
मुकेश इलाहाबादी ------------
खुशबू से तर यादों की रुमाल
को, मोड़ के रख लेता हूँ जेब में
एहतियात से
ज़रूरत पड़ने पे
पोंछ लेता हूँ
ज़माने के ग़मो से
नम हो आयी अपनी आँखों को
मुकेश इलाहाबादी ------------
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