आदम
और हव्वा हर रोज़
चढ़ते हैं पर्वत
हव्वा
हौले हौले चढ़ रही होती है
शिखर - पूरा आनंद लेती हुई
प्रकृति का चढ़ाई का
जब कि
आदम न जाने किस हड़बड़ी में
और जल्दी में
ऊपर तक जाता है
और शिखर छू कर वापस भी आ जाता है
जब की हव्वा अभी शुरुआत ही कर रही होती है
शिखर छूने का
पर वो आदम को वापस आते देख खुद भी
मुड़ जाती है वापस
उदास,अन्यमनस्क शिखर छूने की चाह लिए दिए
पर आदम तो आनन्दिन हो रहा होता है
शिखर छू लेने की खुशी में बिना हव्वा की परवाह किये
मुकेश इलाहाबादी ------------------
और हव्वा हर रोज़
चढ़ते हैं पर्वत
हव्वा
हौले हौले चढ़ रही होती है
शिखर - पूरा आनंद लेती हुई
प्रकृति का चढ़ाई का
जब कि
आदम न जाने किस हड़बड़ी में
और जल्दी में
ऊपर तक जाता है
और शिखर छू कर वापस भी आ जाता है
जब की हव्वा अभी शुरुआत ही कर रही होती है
शिखर छूने का
पर वो आदम को वापस आते देख खुद भी
मुड़ जाती है वापस
उदास,अन्यमनस्क शिखर छूने की चाह लिए दिए
पर आदम तो आनन्दिन हो रहा होता है
शिखर छू लेने की खुशी में बिना हव्वा की परवाह किये
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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