दिल में सूरज उगाये बैठे हैं,
आग इश्क़ की लगाये बैठे हैं
जाने कब चाँद छत पे आये
सभी टकटकी लगाए बैठे हैं
कोइ दवा न देगा, इसीलिए
ज़ख्म अपने छुपाये बैठे हैं
करते हैं बात, साफ़ सुथरी
मन में गिरह लगाए बैठे हैं
जब से कलंदरी रास आयी
हम सब कुछ लुटाये बैठे हैं
मुकेश इलाहाबादी ---------
आग इश्क़ की लगाये बैठे हैं
जाने कब चाँद छत पे आये
सभी टकटकी लगाए बैठे हैं
कोइ दवा न देगा, इसीलिए
ज़ख्म अपने छुपाये बैठे हैं
करते हैं बात, साफ़ सुथरी
मन में गिरह लगाए बैठे हैं
जब से कलंदरी रास आयी
हम सब कुछ लुटाये बैठे हैं
मुकेश इलाहाबादी ---------
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