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Tuesday, 2 May 2017

तुम्हे क्या मालूम !

एक 
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तुम्हे क्या मालूम !

तुम्हारे 
आने की उम्मीद में
आज भी  
प्रतीक्षा रत हैं
मेरे घर की डेहरी / आँगन 
और तुलसी चौरा 

दो 
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तुम्हे क्या मालूम !

तुम्हारे न आने से 
लौट जाता है बसंत 
मेरे द्वार से,
आते - आते 

तीन 
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तुम्हे क्या मालूम !

तुम्हारी 
एक हल्की सी 
चितवन भी 
दे जाती है
शीतल एहसास 
मेरे धधकते उत्ताप को 

मुकेश इलाहाबादी --

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