एक
-----
तुम्हे क्या मालूम !
तुम्हारे
आने की उम्मीद में
आज भी
प्रतीक्षा रत हैं
मेरे घर की डेहरी / आँगन
और तुलसी चौरा
दो
----
तुम्हे क्या मालूम !
तुम्हारे न आने से
लौट जाता है बसंत
मेरे द्वार से,
आते - आते
तीन
------
तुम्हे क्या मालूम !
तुम्हारी
एक हल्की सी
चितवन भी
दे जाती है
शीतल एहसास
मेरे धधकते उत्ताप को
मुकेश इलाहाबादी --
-----
तुम्हे क्या मालूम !
तुम्हारे
आने की उम्मीद में
आज भी
प्रतीक्षा रत हैं
मेरे घर की डेहरी / आँगन
और तुलसी चौरा
दो
----
तुम्हे क्या मालूम !
तुम्हारे न आने से
लौट जाता है बसंत
मेरे द्वार से,
आते - आते
तीन
------
तुम्हे क्या मालूम !
तुम्हारी
एक हल्की सी
चितवन भी
दे जाती है
शीतल एहसास
मेरे धधकते उत्ताप को
मुकेश इलाहाबादी --
No comments:
Post a Comment