मेरी दोस्ती से दिल भर गया शायद
तभी मेरे ख़त जवाब नहीं आया शायद
सुना है मुझसे बिछड़ के खुश रहते हो
तुम्हे मुझसे बेहतर मिल गया शायद?
जिस मुहब्बत को सब कुछ समझे थे
वो हक़ीक़त नहीं कोई ख़ाब था शायद
बेगुनाह हो कर भी सजा पा रहा हूँ
सच को सच कहना नहीं आया शायद
वक़्त का मरहम भी नहीं भर पाया
मेरा घाव घाव नहीं नासूर था शायद
मुकेश इलाहाबादी -------------------
तभी मेरे ख़त जवाब नहीं आया शायद
सुना है मुझसे बिछड़ के खुश रहते हो
तुम्हे मुझसे बेहतर मिल गया शायद?
जिस मुहब्बत को सब कुछ समझे थे
वो हक़ीक़त नहीं कोई ख़ाब था शायद
बेगुनाह हो कर भी सजा पा रहा हूँ
सच को सच कहना नहीं आया शायद
वक़्त का मरहम भी नहीं भर पाया
मेरा घाव घाव नहीं नासूर था शायद
मुकेश इलाहाबादी -------------------
No comments:
Post a Comment