ग़म के आँसुओं को पिया है हमने
इस तरह तिश्नगी मिटाया है हमने
अपने घाव पे हमने फूल रख दिया
किस तरह ज़ख्म छुपाया है हमने
मेरा माज़ी मत याद दिला, उसको
बड़ी मुश्किल से भुलाया है हमने
अंधेरी रातों में तन्हा भटका किये
किसी तरह ज़िंदगी जिया है हमने
मुकेश इलाहाबादी ----------------
इस तरह तिश्नगी मिटाया है हमने
अपने घाव पे हमने फूल रख दिया
किस तरह ज़ख्म छुपाया है हमने
मेरा माज़ी मत याद दिला, उसको
बड़ी मुश्किल से भुलाया है हमने
अंधेरी रातों में तन्हा भटका किये
किसी तरह ज़िंदगी जिया है हमने
मुकेश इलाहाबादी ----------------
No comments:
Post a Comment