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Saturday, 10 June 2017

बेशरम का पौधा हूँ

कोई
रोपता नहीं है
कोई बोता नहीं है
कोई निराई - गुड़ाई भी
करने वाला कोइ नहीं होता
थोड़ी सी  नमी
थोड़ी सी ज़मीन
थोड़ी सी धूप में भी
उग आता हूँ
और हर मौसम में लहलहाता हूँ

हाँ ! हाँ मै बेशरम का पौधा हूँ
हर जगह हर मौसम में उग आता हूँ

मुकेश इलाहाबादी ------------------

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