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Monday, 5 June 2017

हथेली और गुलाब

उस
दिन
खिल उठा था
गुलाब और महमहा उठी थी
मेरी हथेलियाँ
जब तुमने मेरी
हथेलियों की अंजुरी बना के
रख दिए थे अपने दो गुलाबी होंठ

तब मुझे लगा था शायद,
ये फूल ये खुशबू मेरी हथेलियों में क़ैद हो गयी है
हमेशा - हमेशा के लिए और मैंने अपनी अंजुरी को
बंद कर के मुट्ठी बना ली थी

पर शायद मै ये भूल गया था
फूल वक़्त के साथ मुरझा जाते हैं
और खुशबू को कब कौन क़ैद कर सका है

फिर भी वो खुशबू
वो फूल मेरी हथेलियों में तो नहीं पर
ज़ेहन में क़ैद हैं - हमेशा हमेशा की लिए

ओ !मेरी फूल
मेरी खुशबू
मेरी सुमी

मुकेश इलाहाबादी ---

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