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Tuesday, 6 June 2017

न आफताब की दरकार,न अँधेरे से तकरार

न आफताब की दरकार,न अँधेरे से तकरार
हमने अपनी ख़ुदी से किया रौशन घर -बार

तुम तीर की तरह चले, धनुष  की  तरह तने
ये और बात हम बचते रहे तेरे वार से हर बार

हम तो खुले आस्मा के हिमायती रहे हरदम
मुकेश तुम्ही ने ही तो, उठाई है दिलों में दरार

मुकेश इलाहाबादी ----------------------------

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