तुम,
आती हो मेरे सपनो में
बेधड़क
घूमती हो निर्द्वन्द
मै खुश होता हूँ
तुम्हे अपने सपने में पा के पर ,
शायद तुमने अपने ख्वाबों के इर्द गिर्द
बना रक्खी है - चाहर दीवार ताकि
कोई न आ सके उसके अंदर
बिना तुम्हारी इज़ाज़त के
मुकेश इलाहाबादी -------------
आती हो मेरे सपनो में
बेधड़क
घूमती हो निर्द्वन्द
मै खुश होता हूँ
तुम्हे अपने सपने में पा के पर ,
शायद तुमने अपने ख्वाबों के इर्द गिर्द
बना रक्खी है - चाहर दीवार ताकि
कोई न आ सके उसके अंदर
बिना तुम्हारी इज़ाज़त के
मुकेश इलाहाबादी -------------
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