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Wednesday, 7 June 2017

तुम, आती हो मेरे सपनो में

तुम,
आती हो मेरे सपनो में
बेधड़क 
घूमती हो निर्द्वन्द 
मै खुश होता हूँ 
तुम्हे अपने सपने में पा के पर , 
शायद तुमने अपने ख्वाबों के इर्द गिर्द
बना रक्खी है - चाहर दीवार ताकि 
कोई न आ सके उसके अंदर 
बिना तुम्हारी इज़ाज़त के 

मुकेश इलाहाबादी -------------

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