हर - रोज़ गिरता हूँ हर - रोज़ उठता हूँ
खुद ही संवरता हूँ , ख़ुद ही बिखरता हूँ
खुद ही संवरता हूँ , ख़ुद ही बिखरता हूँ
गेंदा नहीं, गुलाब नहीं ,गुलमोहर नहीं
बेशरम का पौधा हूँ बिन माली उगता हूँ
बेशरम का पौधा हूँ बिन माली उगता हूँ
मै पत्थर नहीं हूँ इक जगह टिक जाऊं
दरिया हूँ कभी यहाँ कभी वहाँ बहता हूँ
दरिया हूँ कभी यहाँ कभी वहाँ बहता हूँ
अपना वज़ूद गरीब की झोपड़ी निकला
बरसात में टपकता तूफ़ान में उजड़ता हूँ
बरसात में टपकता तूफ़ान में उजड़ता हूँ
मतलब से ही लोगों से मिलूं आदत नहीं
बेवज़ह भी, अक्सर अपनों से ,मिलता हूँ
बेवज़ह भी, अक्सर अपनों से ,मिलता हूँ
मुकेश इलाहाबादी --------------------
No comments:
Post a Comment