बेवज़ह
के दुःखों का कचरा
मुरझाई यादों के
सूखे पत्तों का ढेर
ढेर सरे बेकार अनुभवों
की धूल
सब कुछ बह गया
बहुत दिन बाद आँखे बरसीं
और, सब धूल ढक्क्ड़ बह गया
सब कुछ सब कुछ धुल गया
अब दिलों दिमाग की सड़क
निखर आयी है - फिर से
साफ़ सुथरी और चिकनी
मुकेश इलाहाबादी ------------
के दुःखों का कचरा
मुरझाई यादों के
सूखे पत्तों का ढेर
ढेर सरे बेकार अनुभवों
की धूल
सब कुछ बह गया
बहुत दिन बाद आँखे बरसीं
और, सब धूल ढक्क्ड़ बह गया
सब कुछ सब कुछ धुल गया
अब दिलों दिमाग की सड़क
निखर आयी है - फिर से
साफ़ सुथरी और चिकनी
मुकेश इलाहाबादी ------------
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