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Tuesday, 13 June 2017

इस नीले आकाश में

मेरे ,
अनवरत प्रेम निवेदन
और तुम्हारी अभेद्य चुप्पी से
ये तो तय है
तुम आज भी 'हाँ ' और 'न' के झूले में
झूल रही हो
तो ,लो ! मै तुम्हे आज़ाद करता हूँ
अपनी सभी स्मृतियों से
अपने सारे भावों - विभावों से
उन सारी कसमो - वायदों से
जो हमने कभी किये ही नहीं या फिर 
भर था - करने और न करने के लिए

जाओ
जाओ मेरी मैना
उड़ जाओ अनंत आकाश में

तुम कहती थी न,
'मुझे क़ैद पसंद नहीं'
'मै उड़ना चाहती हूँ
परिंदे सा अनंत आकाश में '
तो जाओ उड़ो - उड़ो और उड़ो
इस अनत आकाश में

पर याद रखना,
गर मेरी चाहत सच्ची होगी तो
देख लेना 
मै गल -गल कर आब हो जाऊँगा
आब से बादल
बादल से हवा,पानी और आग बनूँगा
और एक दिन इस महा विराट में विलीन हो के
शून्य हो जाऊँगा
और,,,  नीला आसमान बन टाँग जाऊँगा
इस धरती के ऊपर
और फिर,,, तुम उड़ोगी
मेरी ही बाँहों में
इस नीले आकाश में
ओ ! मेरी मैना
ओ ! मेरी सुमी
सुन रही हो न ????

मुकेश इलाहाबादी -----------
 

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