हमारे शहर में पत्थर बोलते हैं
खामोश चेहरों पे ग़म बोलते हैं
हों जिस घुन घुने में दाने कम
वे अक्सर घन - घन बोलते हैं
खुशी और ग़म में साथ साथ हो
दोस्त उसी को हमदम बोलते हैं
मुकेश से बात कर लेता हूँ, पर
महफ़िलों में हम कम बोलते हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------
खामोश चेहरों पे ग़म बोलते हैं
हों जिस घुन घुने में दाने कम
वे अक्सर घन - घन बोलते हैं
खुशी और ग़म में साथ साथ हो
दोस्त उसी को हमदम बोलते हैं
मुकेश से बात कर लेता हूँ, पर
महफ़िलों में हम कम बोलते हैं
मुकेश इलाहाबादी -------------
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