दर्दो ग़म छुपाने में बीत गयी
ज़िंदगी मुस्कुराने में बीत गयी
इक लम्हा भी शुकूं से नहीं बैठे
उमर,सारी कमाने में बीत गयी
इक दिन को आया था मेरा यार
रात सुनने सुनाने में बीत गयी
तुम्हारे घर की दूरी ही इतनी थी
छुट्टियाँ आने-जाने में बीत गयी
मिलने, दो रिन्द बैठे जाम ले कर,
मुलाकत पीने पिलाने में बीत गयी
मुकेश इलाहाबादी --------------
ज़िंदगी मुस्कुराने में बीत गयी
इक लम्हा भी शुकूं से नहीं बैठे
उमर,सारी कमाने में बीत गयी
इक दिन को आया था मेरा यार
रात सुनने सुनाने में बीत गयी
तुम्हारे घर की दूरी ही इतनी थी
छुट्टियाँ आने-जाने में बीत गयी
मिलने, दो रिन्द बैठे जाम ले कर,
मुलाकत पीने पिलाने में बीत गयी
मुकेश इलाहाबादी --------------
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