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Thursday, 6 July 2017

और रात करवट बदलते बीत जाती है

सुबह
की ताज़ी हवा मुझे
इंसान की तरह जगाती है

किन्तु
कुछ देर बाद 'मै'
अपने अंदर के इंसान को मार के
कुत्ते की खाल ओढ़ कर
ऑफिस चल देता हूँ
दिन भर अपने अधीनस्थों पे
भौंकने, बॉस के आगे दुम हिलाने के बाद
सांझ हाँफता हुआ घर लौटता हूँ

रात कुत्ते की खाल उतार
भेड़िया बन जाता हूँ
बिस्तर पे मेमने का शिकार करने के लिए

नींद में फिर इंसान बनना चाहता हूँ
पर निगोड़े सपने बनने नहीं देते
और रात करवट बदलते बीत जाती है

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

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