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Thursday, 6 July 2017

जैसे लौट लौट आता है बसंत

तुम
जाना चाहती हो ?
बेशक चली जाना
बस,
अपने मेहंदी लगे पाँवो की छाप
पायल की खनखन
छोड़ जाना मेरे द्वार

तुम
जाना चाहती हो तो ,
बेशक चली जाओ
पर
अपनी  चाँद चकोरी चितवन
गोरे - सकोरे चूड़ी भरे हाथों
की छन -छन
रख जाना आले पे

और माथे से सरकी बिंदी
चिपका जाना आईने पे

और
फिर - लौट आना
जैसे लौट लौट आता है बसंत फिर - फिर

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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