फ़क़त धूप ही धूप थी कोई साया न था
तुम्हारे जाने के बाद कोई हमारा न था
इक तुम ही तो थे, जिस्से सबकुछ कहा
किसी और को दर्द अपना सुनाया न था
किसी के पास मेरे ज़ख्म की दवा न थी
इसी लिए घाव किसी को दिखाया न था
तुमसे मिल कर हंसा था इक दिन फिर
उम्र भर बाद उसके खुलकर हंसा न था
इक दिन तूने मेरी हथेलो को चूमा था
बहुत दिनों तक हथेली को धोया न था
मुकेश ख़ुदा और मुहब्बत के सिवा मैंने
किसी और दर पे सिर को झुकाया न था
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
तुम्हारे जाने के बाद कोई हमारा न था
इक तुम ही तो थे, जिस्से सबकुछ कहा
किसी और को दर्द अपना सुनाया न था
किसी के पास मेरे ज़ख्म की दवा न थी
इसी लिए घाव किसी को दिखाया न था
तुमसे मिल कर हंसा था इक दिन फिर
उम्र भर बाद उसके खुलकर हंसा न था
इक दिन तूने मेरी हथेलो को चूमा था
बहुत दिनों तक हथेली को धोया न था
मुकेश ख़ुदा और मुहब्बत के सिवा मैंने
किसी और दर पे सिर को झुकाया न था
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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