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Sunday, 23 July 2017

चाँद की जुस्तजूं में रोती रही मुसलसल

चाँद की जुस्तजूं में रोती रही मुसलसल
आँख में इक झील बहती रही मुसलसल

जब तलक हवा तेज़ बहती रही,कलियाँ
टूटने के डर से सहमती रही मुसलसल

आँखे रह - रह  कुछ न कुछ बोलती रही
 चुप्पियाँ उसकी सुनती रही मुसलसल

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

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