चाँद की जुस्तजूं में रोती रही मुसलसल
आँख में इक झील बहती रही मुसलसल
जब तलक हवा तेज़ बहती रही,कलियाँ
टूटने के डर से सहमती रही मुसलसल
आँखे रह - रह कुछ न कुछ बोलती रही
चुप्पियाँ उसकी सुनती रही मुसलसल
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
आँख में इक झील बहती रही मुसलसल
जब तलक हवा तेज़ बहती रही,कलियाँ
टूटने के डर से सहमती रही मुसलसल
आँखे रह - रह कुछ न कुछ बोलती रही
चुप्पियाँ उसकी सुनती रही मुसलसल
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
No comments:
Post a Comment