सोचता
हूँ, अपनी अंजुरी के कटोरे में
तुम्हारी दूधिया हंसी समेट लूँ
और,
उसमे तुम्हारे होंठों का गुलाबीपन मिला कर
उछाल दूँ आसमान में
फिर दुनिया को गुलाबी गुलाबी देखूं
मुकेश इलाहाबादी --------------------
हूँ, अपनी अंजुरी के कटोरे में
तुम्हारी दूधिया हंसी समेट लूँ
और,
उसमे तुम्हारे होंठों का गुलाबीपन मिला कर
उछाल दूँ आसमान में
फिर दुनिया को गुलाबी गुलाबी देखूं
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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